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बीसवीं सदी में डायरियाँ लिखी नहीं जातीं
न लिखकर छोड़ा जाता है आने वाली संतानों के लिए
कुछ भी दर्ज नहीं करती हमारी सदी
न विवाद कोई, न वार्तालाप,
न कलंक कोई, न षड़यंत्र।
इतना कुछ देखा है इस सदी ने
देखी है आस्थाओं की उथल-पुथल
देखा है किलों का ढहना इस तरह
कि इच्छा नहीं होती कुछ याद रखने की।
पर कविता-शरणस्थली है आत्मा की
सब कुछ दर्ज किया जा सकता है कविता पंक्तियों में बिना डरे
बिम्ब की ओट में जैसे दीवार की ओट में
कविता की पंक्तियों के पीछे
जैसे लोहे के कवच के पीछे।
सर्दियाँ बीत जाने के बाद ही
तुड़ी-मुड़ी पांडुलिपियों में से
उलझे हुए रूपकों के बीच से
निकलेगा बाहर रखा हो छिपा कर जिसे
चाहे वह जीवन हो या मृत्यु
शहद हो या जहर
नमक या शक्कर।
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